Wednesday, January 25, 2017

मेरे कवि दोस्त के liye

मुझसे अब ये ना हो पाएगा
के ख़ुद को यूँ ही
शराब में डूबा कर
तुम्हें याद करूँ

के तुम से कुछ आँसू लूँ
सियाही के लिए
पन्ने ख़ाली ही रहते हैं
तो रहने ही दो

के तुमसे ये हो ना पाएगा
तुम सामने आओ
और मुझे दर्द भी दो

मैंने आँखों से समझौता किया था
जब वो ले गये थे
तेरे सामने मेरी किताब जलाने को

के अब से वही मैं हूँ
वही तुम हो
और किताबें
अब हमारी कुछ नहीं लगती