इक
घर बनाया था
कुछ
राज़ द़बाने को
अख़बार
के पन्ने पे
मेरी
क़ब्र बना गया...
आहटें
यूँ भी तो नहीं
होतीं
के
हम कान लगा बैठें
के
वो कहता भी था
करना
भी सिखा गया
अबके
जनाज़ा निकला तो
कोई
पीछे भी ना आया
ऐसी
चलाया मन्तर
पत्थर
बना गया....
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